हाल ही में, ‘किशोर न्याय अधिनियम’, 2015 में संशोधन करने हेतु ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित कर दिया गया है।
नवीनतम संशोधनों के अनुसार:
अधिनियम के तहत जिलाधिकारियों को ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयास करने के लिए और अधिक अधिकार दिए गए हैं।
अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (ADM) सहित जिला मजिस्ट्रेट (ADM) स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों आदि के कामकाज का मूल्यांकन करेंगे।
जिलाधिकारी द्वारा ‘बाल कल्याण समितियों’ के सदस्यों, जो कि आम तौर पर सामाजिक कल्याण कार्यकर्ता होते हैं, की शैक्षिक योग्यता सहित पृष्ठभूमि की जांच भी की जाएगी। वर्तमान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
विधेयक में, जिलाधिकारी से ‘बाल कल्याण समिति’ के सदस्यों की संभावित आपराधिक पृष्ठभूमि की भी जांच करने को कहा गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नियुक्ति से पहले किसी भी सदस्य के खिलाफ बाल शोषण या बाल यौन शोषण संबंधी कोई मामला तों दर्ज नहीं था।
‘बाल कल्याण समितियों’ के लिए संबंधित जिलों में उनकी कार्यक्रमों के बारे में जिलाधिकारी को नियमित रूप से रिपोर्ट करना होगा।
नवीनतम संशोधनों के अनुसार, जिन अपराधों में अधिकतम सजा 7 वर्ष से अधिक कारावास है, लेकिन कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं की गई है या 7 वर्ष से कम की न्यूनतम सजा प्रदान की गई है, उन्हें इस अधिनियम के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा।
संशोधनों के अनुसार, गोद लेने के आदेश, अब अदालत के स्थान पर अब जिलाधिकारी (अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत) द्वारा जारी किए जाएंगे।
महत्व:इन परिवर्तनों के द्वारा जिलाधिकारियों को अधिक शक्तियाँ और उत्तरदायित्व प्रदान किया गया है।इससे जिला स्तर पर, नियंत्रण और संतुलन सहित, बच्चों की सुरक्षा में वृद्धि हुई है, और देश में गोद लेने की प्रक्रिया में भी तेजी आएगी।
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